रविवार, 14 अगस्त 2011

झूठा कलंक लगाने का फल

    झूठा कलंक लगाने का फल   ,     कुर्म पुराण अनुसार जिनपर झूठा  दोष कलंक लगाया जाता हे, उनके रोने से जो आंसू निकलते हे , वे झूठा कलंक लगाने वाले के पुत्रों का नाश कर डालते हे अतः कभी किसी पर झूठा कलंक
नहीं लगाना चाहिए !

बुधवार, 3 अगस्त 2011

RATNA GRAH VANASPATI VASTU YANTRA

जन्म कुण्डली से जाने किस देवता की करे आराधना
जन्मकुण्डली द्वारा लग्न पंचम, नवम स्थान में जिन ग्रहों का प्रभाव हो उन ग्रहांे के बल अनुसार साधक को उन देवताओं की साधना करना चाहिए
भाग - 1
1 सूर्य- विष्णु , शिव, दुर्गा, ज्वालादेवी, ज्वालामालिनी, गायत्री, आदित्य, स्वर्णाकषर्ण, भैरव की उपासना करे ।
2 सूर्य शनि, सूर्य राहु-महाकाली, तारा, शरभराज, नीलकण्ठ,यम, उग्रभैरव, कालभैरव, शमशान भैरव की पूजा करे ।
3 सूर्य बुध, सूर्य मंगल- गायत्री, सरस्वती, दुर्गा उपासना ।
4 सूर्य शुक्र -वासुदेव, मातडंगी, तारा, कुबेर, भैरवी, श्रीविद्या की उपासना करे ।
5 सूर्य केतु-छिन्नमस्ता, आशुतोषशिव, अघोरशिव ।
6 सूर्य शनि राहु-पशुपतास्त्र तंत्र,मंत्र मरणादि षटकर्म से व्यक्ति अधिकतर पीडित होगा रक्षा के लिए काली, तारा, प्रत्यंगिरा, जातवेद दुर्गा की उपासना करे ।
ज्योतिषाचार्य प्रणयन एम. पाठक
9202220000
भाग- 2
7 सूर्य,गुरू,राहु-बगलामुखि, बगलाचामुण्डा, उचिष्टगणपति, वीरभद्र । केवल बगलामुखि उपासना से सिद्धि मिले परन्तु या तो सिद्धि दुसरो के लिए नष्ट होगी या देवी नाराज होकर वापस ले लेगी ।
8 चन्द्रमा-लक्ष्मी, श्रीविद्या षोडशी, यक्षिणी, वशीकरणादि प्रयोग शिव, कामेश्वर उपासना शुभ रहे ।
9 चन्द्र मंगल- हनुमान उच्छिष्ट चाण्डालिनी, मांतगी, शबरी, नरसिहँ, वनदुर्गा, भैरवी उपासना शुभ रहे ।
10 चन्द्र बुध-बगला, कर्णपिशाची, उच्छिष्ट चाण्डालिनी नरसिहँ, सरस्वती, वैष्ण्सवी, वाराही, हयग्रीव, दुर्गा उपासना शुभ रहे ।
11 चन्द्र गुरू-बगलामुखी, भुवनेश्वरी, लक्ष्मी पितृ, कुबेर, ब्राह्म, शिव, कृष्ण, राम, दत्तात्रेय, अजपाजप, सोह साधना करे ।
12 चन्द्र शुक्र-कृष्ण, लक्ष्मी, त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, शाकम्भरी, यक्षिणी, वामन, दत्तात्रेतांत्रिक उपासनायें ।
ज्योतिषाचार्य प्रणयन एम. पाठक
9202220000
भाग - 3
13 चन्द्र शनि-दुर्गा तंत्र- मंत्र सिद्धि, यक्षिणी, पिशाचि, भैरव, काली, तारा, उपासना करें ।
14चन्द्र राहु- भैरवी, काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, वाराही, उग्रचण्डा, गणेश, विघ्नेश, हयग्रीव, शिव मृत्युंज्जय उपासना करे
15चन्द्र केतु - हनुमान, स्वामी कार्तिकेय, छिन्नमस्ता, भैरव, उच्छिष्टगणेश, वासुदेव, विष्णु, गजेन्द्रमोक्ष स्त्रोत का पाठ करे ।
16मंगल-हनुमान, भैरव, वीरभद्र, स्वामीकार्तिकेय, दुर्गा उपासना करे।
17 मंगल, बुध-बगलामुखी, भैरवी, नारसिंही, ब्राह्मी आदि अष्टमातृका, दुर्गा, सरस्वती, कृष्ण, गणपति, उपासना श्रेष्ठ रहै
18 मंगल, गुरू-हनुमान, गायत्री, विष्णु, शिव, पितृ, यक्ष, कुबेर भिन्नपाद नेत्रौ की उपासना शुभ रहे ।संतान चिंता हेतु षष्ठी देवी का पाठ करे ।
ज्योतिषाचार्य प्रणयन एम. पाठक
9202220000
भाग - 4
19मंगल, शुक्र- वामन,लक्ष्मी, कामेश्वरी, ललिता, भुवनेश्वरी, कामाख्या, दुर्गा, अष्टभैरव, कृष्ण उपासना शुभ रहे ।
20मंगल, शनि-काली, तारा, श्मशान साधना, शरभ, भैरव, मंगल चण्डिका, उग्रदेवता की उपासना करे ।
21 मंगल,राहु-निम्न श्रेणी की उपासना, भैरव, छिन्नमस्ता, धूमावती, नीलतारा की उपासना करे ।
22 मंगल,केतु-वाराही, दुर्गा, शिव, विष्णु, गणेश, हनुमान व भैरव की उपासना शुभ रहे ।
23 बुध-गणेश, दुर्गा, विष्णु, सरस्वती, गंधर्व उपासना शुभ रहे ।
24बुध, गुरू-बगलामुखी, सरस्वती, गायत्री, विष्णु उपासना शुभ रहे ।
25बुध, शुक्र-कामाख्या, कामेश्वरी, लक्ष्मी, भैरवी, मातंगी, भुवनेश्वरी, कृष्ण उपासना शुभ रहे ।
ज्योतिषाचार्य प्रणयन एम. पाठक
9202220000
भाग- 5
26 बुध, शनि- राम, शिव, हनुमान, उच्छिष्टगणपति, यक्षिणी सिद्धि उपासना करे ।
27बुध, राहु-पिशाचि विद्या, गारूडी विद्या, धूमावती विघ्नेशगणपति व आशुतोषशिव की उपासना करे ।
28बुध,केतु-मृत्युंज्जय शिव, गणेश, कार्तिकेय, हनुमान, भैरव, दुर्गा उपासना करे।
29गुरू-विष्णु, शिव याज्ञिक कर्म बगलामुखी उपासना करे। यदि कुण्डली में 6,8,12 वें स्थान में हो तो बगलामुखी उपासना में विलम्ब से लाभ होवेे , गुरू राहु, गुरू शनि योग से भी विलम्ब से लाभ होवेे, सिद्धि प्राप्त हावे किन्तु पुनः क्षय हो जावे । गायत्री उपासना अवश्य करे ।
30 गुरू-शुक्र, गुरू शनि, गुरू मंगल, गुरू राहु, गुरू केतु योग से साधना में विलम्ब आते है या सिद्धि विलम्ब से होती है । जिससे साधना में श्रद्धा अश्रद्धा पैदा हो जाती है । अतः गुरू का उपयोग करे ।
31शुक्र-लक्ष्मी, तंत्र-मंत्र मार्ग का ज्ञाता होवे । शिव, मृत्युंज्जय श्री विद्या, त्रिपुरसुन्दरी, दुर्गा उपासना, हेरम्ब, गणपति, मातंगी, शाकम्भरी, शबरी उपासना शुभ रहे । शुक्र- शनि, शुक्र-राहु, शुक्र-केतु, योग से क्षुद्र सिद्धि की ओर साधक का मन दौड़ता है ।
ज्योतिषाचार्य प्रणयन एम. पाठक
9202220000
भाग - 6
32शनि-शनि उपासना से पूर्व पापों का क्षय होता है । दुर्गा, काली, तारा, आसुरी दुर्गा व भैरवादि की उपासना करता है ।
33शनि- राहु, शनि, केतु आदि के कारण भी मानसिक यातनायें पा्रप्त होती है । अतः शत्रुओं को दण्ड देने हेतु उग्र साधनायें करता है ।
34कभी-कभी धूमावती की उपासना से भी ऐसे पापों व विघ्नों का निवारण होता है । परन्तु धूमावती उपासना आसान नहीं, सोच समझ कर करे क्योंकि धूमावती विघ्नों की अधिष्ठात्री है ।, अमंगल युक्ता है, अतः आव्हान घर में न करे ।
ज्योतिषाचार्य प्रणयन एम. पाठक
9202220000

शनिवार, 30 जुलाई 2011

रत्न गृह वास्तु वनस्पति यंत्र

किस लग्न में क्या रोग होगें 
लगातार 20 वर्षो से हजारो लेख एवं सत्य भविष्यवाणियाँ कर चुके विख्यात भविष्यवक्ता श्री आचार्य प्रणयन एम. पाठक ने बताया कि जन्मकुण्डली के द्वारा जातक के स्वास्थ्य के संबंध में वह सब कुछ पहले ही जाना जा सकता है जो भविष्य के गर्भ में छुपा होता है ।कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से बलवान है, तो कोई अत्यन्त कमजोर, किसी का शरीर रोग का घर है तो कोई पूर्ण स्वस्थ हैजो जातक जिस लग्न में जन्म लेता है। उसे उस लग्न की ही बीमारियों का सामना करना पडता है।
मेष- िजस जातक का जन्म मेष लग्न में होता है उसे गले के रोग त्वचा संबंधी रोग एवं एलर्जी, सनकीपन, रक्त विकार जैसे- फोडे फुन्सी आदि रोग अधिक होते है जातक कोइ न रोगो से बचने के लिए अपनी कुन्डली द्वारा उपाय करने चाहिए ।
वृषभ-वृषभ लग्न वाले जातक को गुप्त रोग की पूर्ण संभावना रहती है। शुगर तथा मुंह के रोग अधिक होते है ।
मिथुन-मिथुन लग्न में जन्मा जातक रक्त विकार, खून की कमी या परेशानी रक्त से संबंधित कोई दोष कान में दर्द तथा कन्धो में कष्ट की संभावना बनी रहती है।
कर्क-कर्क लग्न के जातक को पिलीया रोग, दिल की बीमारी फेफडे संबंधी रोग शुगर आदि बीमारियों के बलबती संभावना होती है।
सिंह-सिंह लग्न वाले जातकों को पेट संबंधी रोग वायु का कुपित होना वायु गोला स्नायुतंत्र में गडबडी तथा गठिया आदि रोग होते है।
कन्या-इस जातक को पैर में चोट मोच कमरदर्द, भ्रम आदि रोग होने की संभावना रहती है।
तुला-इस जातक को जलोदर या जल संबंधी रोग केन्सर या भयावह बीमारी की संभावना रहती है। घुटने ओर गठिया जैसी बीमारी भी होती है।
वृश्चिक-वृश्चिक लग्न वाले जातक को शस्त्राघात भय बना रहता है। इसे चोट, दुर्घटना और सिरदर्द जैसे रोग भी होते है।
धनु-इस जातक को कंधो में दर्द जीवन साथी से कष्ट, यौन रोग, गले में खराबी जैसे रोग होने की संभावना रहती है।
मकर-मकर लग्न के जातको को मानसिक चिन्ता अधिक रहती है इसे त्वचा रोग तथा मानसिक बीमारी अधिक होती है।
कंुभ-इस जातक को जिगर एवं हृदय रोग होते है ।
मीन-मोटापे तथा हड्डी टूटना आदि रोग होते है ।
ज्योतिषाचार्य प्रणयन एम. पाठक
9202220000